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shayari

Manav Prem
पत्थरों तुम्हारी औकात ही क्या..उस ज़ालिम का "दिल" 
उफ़! तौबा
Bushra Aiman
Manav Prem
Dharmen Kumar
और  उस  सुबह  सी  कोई  सुबह ना हुई ! 
ए  दोस्त !
जिस  सुबह  हमारी  नजरे  उनके  नूर  से  टकरा  गयी !
Dharmen Kumar
चलते हुए हमारे खवाबो में दस्तक दे जाती है !
प्यारी सी कुछ हसीन पल दे जाती है !
उन पालो को समेट लेते हैं हम ताकि सपना टूटने के बाद भी दूर न जा सके !
Dharmen Kumar
इस फ़िज़ा से  प्यार  ना  फरमाए  !!! ये  फ़िज़ा  बस  दो  पल  की  मेहमान  है  !!!ये  रहेगी  तेरे  बाद  भी !!! ये  रहेगी तेरे  बाद  भी !!! पर  तू  ये  मत  भूल  कम्बख्त  इश्क़े  जूनून  में  !!!की  !!तू  बस  एक  इंसान  है  !!तू  बस  एक  इंसान  है  .!!
Dharmen Kumar
"वो ज़ुबान ही किया जिसमे रब का नाम न हो!
वो प्यार ही किया जिसमे ईमान न हो!
दिल तोह सबके पास है लेकिन वो दिल भी किया जिसमे किसीके लिए प्यार न हो!"  
SONU SPAN